महाश्रमण ने कहा

1. तुम कार्यकर्ता बनना चाहते हो यह अच्छी बात हो सकती है पर तुम यह सोचो तुम्हारा अपने काम, क्रोध व भय पर नियंत्रण है या नहीं | - आचार्य श्री महाश्रमण 2. यदि यह आस्था हो जाए कि मूर्तिपूजा करना, द्रव्यपूजा करना धर्म है तो वह तेरापंथ की मान्यता के अनुसार बिल्कुल गलत है | हमारे अनुसार यह सम्यक्त्व को दूषित करने वाला तत्व है | - परमश्रद्धेय आचार्यश्री महाश्रमणजी 3. जो भी घटना घटित हो, उसे केवल देखना सीखे, उसके साथ जुड़े नहीं | जो व्यक्ति घटना के साथ खुद को जोड़ देता है, वह दु:खी बन जाता है और जो द्रष्टा ( viewer ) भाव से घटना को देखता है, वह दुःख मुक्त रहता है | ~आचार्य श्री महाश्रमणजी

Monday, 8 October 2012

अर्हत पंचक


प्रभु म्हारे मन मंदिर में पधारो
म्हारो स्वागत नाथ सिकारो प्रभु


१.चिन्मय ने पाषाण बनाऊ ओ परिचय जड़ता रो
स्वयं अमल अविकार प्रभु तो स्नान कराऊ क्यारो

२. फल फूला री भेंट करू के जीवन अर्पण म्हारो
अगर तगर चन्दन के चरचू कण कण सुरभित थारो

३.नहीं ताल कंसाल बजाऊ धूप न दीप उजारो
केवल लयमय स्तवना गाऊ ध्याऊ ध्यान गुणा रो

४.मन चंचल हे और मलिन हें ओ हें’धीठ धुतारो
सब कुछ हें तब ही तो तेडू सकरुण दृष्टी निहारो

५.वीतराग हो समदर्शी हो समता रस संचारो
तुलसी तारण तरण तीर्थपति अपनो विरुद विचारो