Thursday, 1 December 2022
जैन कार्यवाहिनी कोलकाता द्वारा दीक्षार्थी दक्ष नखत का मंगल भावना समारोह
Tuesday, 12 July 2022
17 सितंबर को देशभर में 2000 से ज्यादा स्थानों पर होगा रक्तदान शिविरों का आयोजन
नई दिल्ली, अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के निर्देशन में सम्पूर्ण देश और देश से बाहर आगामी 17 सितंबर को आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष में मेगा ब्लड डोनेशन ड्राइव का आयोजन किया जा रहा है। अभातेयुप अपने शाखा परिषदों के माध्यम से व अन्य संस्थाओं के सहयोग से इस मेगा ब्लड डोनेशन ड्राइव के तहत पूरे देश में एक दिन में 2000 से अधिक रक्तदान शिविरों का आयोजन करके नया कीर्तिमान स्थापित करने जा रही है ।
अभातेयुप के राष्ट्रीय मीडिया सलाहकार अंकुर बोरदिया ने जानकारी देते हुए बताया कि इसी संदर्भ में देश के माननीय उपराष्ट्रपति श्री वैंकेया नायडू से अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के महामंत्री पवन मांडोत एवं भूतपूर्व अध्यक्ष विमल कटारिया ने शिष्टाचार भेंट की एवं अपने इस अभियान व महनीय सेवा कार्य से उपराष्ट्रपतिजी को अवगत कराया । इस अवसर पर महामंत्री पवन मांडोत ने उपराष्ट्रपतिजी को बताया कि हमारी संस्था गत 5 जून को देश का पांच चिन्हित क्षेत्रों से इस सेवा कार्य का आगाज कर चुकी है। पूर्व अध्यक्ष विमल कटारिया ने बताया की पूरे देश और नेपाल में फैली हमारी 354 शाखाओं के साथ साथ देश की अन्य कई समाज सेवी संस्थाएं भी इस महाभियान में जुड़ने के लिए आगे आ रही है । माननीय उपराष्ट्रपति जी ने संस्था के सेवा कार्यो की सराहना करते हुए 17 सितंबर को होने वाले इस मेगा ब्लड डोनेशन ड्राइव को अपना महत्वपूर्ण समर्थन प्रदान किया । विदित रहे कि मानव सेवा, देश सेवा, राष्ट्र सेवा के इस क्रम में यह संस्था पहले भी कई कीर्तिमान रच चुकी है ।
साभार : डॉ श्रीमती कुसुम लुनिया
Monday, 11 July 2022
अपने मन में शांति बनाए रखने और चित्त को प्रसन्न बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए : युगप्रधान आचार्य महाश्रमण
छापरवासियों को प्रतिकूल परिस्थति में भी मानसिक शांति बनाए रखने की दी पावन प्रेरणा
आसपास के क्षेत्रों से गुरु सन्निधि में चतुर्मास करने पहुंच रहीं हैं चारित्रात्माएं
11.07.2022, सोमवार, छापर, चूरू (राजस्थान) , जैन आगमों में विभिन्न विषयों से संबंधित वर्णन प्राप्त होता है। हालांकि आगम आम आदमी के समझ में न भी आए, क्योंकि इसकी भाषा प्राकृत या अर्धमागधी है। आगमों की वाणी का अर्थ उसके हिन्दी अनुवाद अथवा टिप्पण आदि के माध्यम से जाना जा सकता है। जैन धर्म में बत्तीस आगम मान्य हैं। परम पूज्य आचार्य तुलसी के समय में आगम सम्पादन का कार्य प्रारम्भ हुआ था। इस कार्य में आचार्य महाप्रज्ञजी का कितना श्रम लगा। लगभग सभी आगमों के मूल पाठ के संपादन का कार्य तो गया, अब उनका अनुवाद, टिप्पण और परिशिष्ट आदि का कार्य आज भी गतिमान है। आगमों से अनेक विषयों का वर्णन मिलता है। सृष्टि, संसार की जानकारी मिलती है। अध्यात्म की साधना में क्या करणीय और क्या अकरणीय का ज्ञान प्राप्त होता है।
हमारे यहां नवदीक्षित साधु-साध्वियां दसवेंआलियं ग्रन्थ को कंठस्थ करते हैं। इस आगम के माध्यम से साधुचर्या का प्रशस्त मार्गदर्शन प्राप्त होता है। साधु को कैसे बोलना, किसी प्रकार गोचरी करना, विनय करना, साधुओं के पंच महाव्रत व हिंसा से बचने का वर्णन भी इस छोटे-से ग्रंथ से प्राप्त हो जाता है। साधु के लक्षण को जानने के लिए यह ग्रन्थ आदर्श है। आगमों में कितना तत्त्वज्ञान भरा हुआ है। ज्ञान के संदर्भ में नंदीसूत्र को देखा जा सकता है। इस प्रकार आगमों से विविध विषयों के संदर्भ में ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। इसलिए मानों यह कहा जा सकता है कि अर्हतों के अनुभवों का सार है आगम। इसलिए आगमों अध्ययन आदि करने से ज्ञान की प्राप्ति होती है। ज्ञान की प्राप्ति कर अपने जीवन को मोक्ष की दिशा में ले जाने का प्रयास कर सकता है। उक्त पावन प्रेरणा जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने छापर चतुर्मास प्रवासस्थल में बने भव्य में एवं विशाल प्रवचन पण्डाल में उपस्थित श्रद्धालुओं को प्रदान की।
आचार्यश्री ने आगे कहा कि यह संसार अनित्य है और यह जीवन अधु्रव है। यहां की दुःख की बहुलता है। जीवन में अनेक रूपों में दुःख प्राप्त होता है। कभी शारीरिक तो कभी मानसिक दुःख प्राप्त होता है। इसलिए आदमी आगमों के माध्यम से ज्ञान प्राप्त कर अपने मन में शांति बनाए रखने और चित्त को प्रसन्न बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। आगे की दुर्गति से बचने के लिए आदमी को सत्संगति के माध्यम से ज्ञानार्जन कर अपने जीवन को परमसुख अर्थात् मोक्ष की दिशा में जाने का प्रयास करे।
तेरापंथ धर्मसंघ के अष्टामाचार्य कालूगणी की जन्मभूमि में वर्ष 2022 के चतुर्मास हेतु पधारे आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में आसपास के क्षेत्रों की चारित्रात्माएं भी गुरुकुलवास में चतुर्मास हेतु उपस्थित हो रही हैं। कार्यक्रम के दौरान बीदासर से साध्वी साधनाश्रीजी व साध्वी अमितप्रभाजी ने अपनी सहवर्ती साध्वियों के साथ दर्शन कर हृदयोद्गार व्यक्त करते हुए सहवर्ती साध्वियों संग गीत का संगान किया। आचार्यश्री ने साध्वियों को पावन आशीर्वाद प्रदान किया। आचार्यश्री के दर्शन कर साध्वियां हर्षविभोर नजर आ रही थीं।
कार्यक्रम में श्री झंकार दुधोड़िया, तेरापंथ युवक परिषद के मंत्री श्री दिलीप मालू व श्रीमती तारामणि दुधोड़िया ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। गुवाहाटी व छापर की तेरापंथ महिला मण्डल, भ्राताद्वय श्री सुरेन्द्र-नरेन्द्र कुमार नाहटा, अणुव्रत समिति की महिला सदस्याओं व श्री राहुल बैद ने पृथक्-पृथक् गीत का संगान कर आचार्यश्री से पावन आशीर्वाद प्राप्त किया।
साभार : महासभा कैम्प ऑफिस
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Monday, 2 November 2020
गायन, चित्रकला, भाषण और लेखन प्रतियोगिताओं का राष्ट्रीय स्तर पर होगा शीघ्र आयोजन
अणुव्रत आंदोलन द्वारा नई पीढ़ी के नव निर्माण की अनूठी पहल
नई पीढ़ी में रचनात्मकता और सकारात्मकता के विकास को केन्द्र में रख कर अणुव्रत आन्दोलन की प्रतिनिधि संस्था अणुव्रत विश्व भारती द्वारा पूरे देश में अणुव्रत क्रिएटिविटी कॉन्टेस्ट के नाम से विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जा रहा है। गायन, चित्रकला, भाषण और कविता व निबन्ध लेखन जैसी रचनात्मक विधाओं में होने वाली इन प्रतियोगिताओं में तीन वर्गों में कक्षा 3 से 12 तक के बच्चे भाग ले सकेंगे। प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए शीघ्र ही वेबसाइट और ऐप लॉन्च किए जाएंगे। उल्लेखनीय है कि इनमें से कुछ प्रतियोगिताएं पिछले 25 वर्षों से आयोजित की जा रही हैं लेकिन कोरोना जनित परिस्थितियों के चलते पहली बार इन्हें ऑनलाइन प्लेटफार्म पर आयोजित किया जा रहा है।
अणुविभा के अध्यक्ष श्री संचय जैन ने बताया कि ये प्रतियोगिताएं पूर्णतः ऑनलाइन आयोजित होंगी जिसमें बच्चे अपनी स्कूल के माध्यम से अथवा सीधे भी पंजीकरण करवा कर अपनी प्रविष्ठि अपलोड कर सकेंगे। प्रतियोगियों में बिना किसी जाति, धर्म, वर्ग या लैंगिक भेदभाव के कक्षा 3 से 12 का कोई भी बच्चा भाग ले सकेगा और यह पूर्णतः निशुल्क होगी। शहर व जिला स्तर पर ई प्रमाणपत्र प्रदान किए जाएंगे एवं राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर श्रेष्ठ प्रतियोगियों को चुना जाएगा और उन्हें पुरस्कार और प्रमाण पत्र प्रदान किया जाएगा। प्रतियोगिताओं का मुख्य विषय है - "कोरोना वैश्विक संकट : प्रभाव, समाधान और अवसर" जिसके अन्तर्गत दिए गए अनेक उप विषयों में से बच्चे अपनी पसन्द के विषय पर प्रस्तुति दे सकेंगे।
उल्लेखनीय है कि 7 दशक पूर्व महान संत आचार्य तुलसी द्वारा प्रवर्तित अणुव्रत आंदोलन मानवीय मूल्यों के संवर्द्धन के लिए अपने बहुआयामी रचनात्मक प्रकल्पों के माध्यम से निरन्तर प्रयासशील है। अणुव्रत दर्शन की यह मान्यता है छोटे-छोटे व्रत स्वीकार कर व्यक्ति स्वयं को सकारात्मक दिशा में अग्रसर कर सकता है और सुधरे व्यक्ति से ही समाज, राष्ट्र और विश्व सुधर सकता है। वर्तमान में अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण इस आन्दोलन को आध्यात्मिक नेतृत्व प्रदान कर रहे हैं और अहिंसा यात्रा के रूप में हजारों किलोमीटर की पदयात्राएं करके जन-जन को नैतिकता, सद्भावना और नशामुक्ति का संदेश दे रहे हैं।
नई पीढ़ी का संस्कार निर्माण अणुव्रत आंदोलन की प्रमुख प्रवृत्तियों में शामिल रहा है और अणुव्रत विश्व भारती का राजसमंद स्थित मुख्यालय चिल्ड्रन'स पीस पैलेस बाल मनोविज्ञान पर आधारित एक प्रयोगशाला है जहां कुछ दिन बीता कर ही बच्चे अपने आप को रूपांतरित अनुभव करते हैं। आचार्य महाप्रज्ञ द्वारा प्रणीत जीवन विज्ञान पाठ्यक्रम नई पीढ़ी के नव निर्माण का सशक्त माध्यम है जिसके माध्यम से लाखों बच्चे लाभान्वित हो चुके हैं।
श्री जैन ने बताया कि प्रतियोगिता में भाग लेने के इच्छुक स्कूल और बच्चों के लिए शीघ्र ही वेबसाइट का लिंक शेयर किया जाएगा। प्रतियोगिता की तैयारियों के लिए अणुविभा की केंद्रीय टीम में अध्यक्ष श्री संचय जैन के अलावा वरिष्ठ उपाध्यक्ष श्री अविनाश नाहर, महामंत्री श्री राकेश नौलखा, मंत्री श्री प्रकाश तातेड, सह मंत्री श्री जय बोहरा प्रतियोगिताओं के राष्ट्रीय संयोजक श्री रमेश पटावरी एवं लगभग 150 से अधिक जोनल, राज्य एवं स्थानीय संयोजकों की टीम दिन रात तैयारियों में जुटी है। श्री विमल गुलगुलिया के तकनीकी सहयोग से प्रतियोगिता के लिए वेबसाइट एवं ऐप तैयार किया गया है।
Friday, 3 January 2020
अभातेयुप द्वारा विश्वशांति एवं एकता का प्रतीक अंतरराष्ट्रीय जैन सामायिक फेस्टिवल का भव्य आयोजन ५ जनवरी को
विश्वशांति एवं एकता हेतु परम पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जी की पावन प्रेरणा से जैन तेरापंथ धर्मसंघ के युवाओं का संगठन अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद द्वारा अनूठे रूप में जैन समायिक फेस्टिवल का आयोजन पूरे देशभर में और विश्व के अनेक प्रमुख शहरों में नववर्ष 2020 के प्रथम रविवार, दिनांक 5 जनवरी को किया जाएगा।
Monday, 15 July 2019
ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप की ओर हो गति: आचार्यश्री महाश्रमण
◆आचार्यश्री ने चतुर्विध धर्मसंघ को मोक्ष प्राप्ति का बताया मार्ग
◆आचार्यश्री की पावन प्रेरणा प्राप्त कर निहाल हो उठे श्रद्धालु
Tuesday, 16 October 2018
Acharya Shree Mahashraman Ji
Original Name : Mohan Dugar
Date of Birth : 13 May 1962
Place of Birth : Sardarsahar (Rajasthan)
Initiation- Date : 5th May 1974
Place : Sardarsahar (Rajasthan)
Name : Muni Mudit
Initiated by : Muni Shri Sumermalji (Ladnun)
Guru : Acharya Shri Tulsi, Acharya Shri
Designated Acharya
Date : 9 May 2010
Place : Sardarshahar
Patotsav
Date & Place : 23 May 2010, Sardarshahar
जीवन परिचय
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राजस्थान के इतिहासिक नगर सरदारशहर में पिता झुमरमल एवं माँ नेमादेवी के घर 13 मई 1962 को जन्म लेने वाला बालक मोहन के मन में मात्र 12 वर्ष की उम्र में धार्मिक चेतना का प्रवाह फुट पड़ा एवं 5 मई 1974 को तत्कालीन आचार्य तुलसी के दिशा निर्दशानुसार मुनि श्री सुमेरमलजी "लाडनू " के हाथो बालक मोहन दीक्षित होकर जैन साधू बन गये !
धर्म परम्पराओ के अनुशार उन्हें नया नाम मिला "मुनि मुदित"
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आज तेरापंथ धर्म संध को सूर्य से तेज लिए चाँद भरी धार्मिक,आध्यात्मिक मधुरता लिए 11 वे आचार्य के रूप में आचार्य महाश्रमण मिल गया है ! विश्व के कोने कोने में भैक्षव (भिक्षु) शासन की जय जयकार हो रही है!
भाई बहन : छह भाई, दो बहिने ( आचार्य श्री महाश्रमण जी सातवे क्रम में )
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गोर वर्ण , आकर्षक मुख मंडल , सहज मुस्कान से परिपूर्ण , विनम्रता , दृढ़ता , शालीनता, व् सहजता जैसे गुणों से ओत:प्रोत आचार्य महाश्रमणजी से न केवल तेरापंथ अपितु पूरा धार्मिक जगत आशा भरी नजरो से निहार रहा है ! तेरापंथ के अधिनायकदेव भिक्षु, अणुव्रत के प्रणेता आचार्य तुलसी एवं श्रेद्धेय जैनयोग
पुनरुद्वारक प्रेक्षा प्रणेता महाप्रज्ञजी के पथ वहाक आचार्य श्री महाश्रमणजी हम सबका ही नही , पूरी मानव जाती का पथदर्शन करते रहेंगे !
700 साधू- साध्वीया, श्रमण- श्रमणीयो, एवं सैकड़ो श्रावक- श्राविकाओं को सम्भालना एवं धर्म संघ एवं आस्था से बांधे रखना बड़ा ही दुर्लभ है! आज के युग में हम एक परिवार को एक धागे में पिरोके नही रख सकते तब तेरापंथ धर्मसंघ के इस विटाट स्वरूप को एक धागे में पिरोकर रखना, वास्तव में कोई महान देव पुरुष ही होगा जो तेरापंथ के आचार्य पद को शुभोषित कर रहे है!
किसी भी परम्परा को सुव्यवस्थित एव युगानुरूप संचालन करने के लिए सक्षम नेतृत्व की जरूरत रहती है ! सक्षम नेतृत्व के अभाव में सगठन शिथिल हो जाता है! और धीमे-धीमे छिन्न भिन्न होकर अपने अस्तित्व को गंवा बैठता है !
तेरापंथ उस क्रान्ति का परिणाम है जिसमे आचार्य भिक्षु का प्रखर पुरुषार्थ , सत्य निष्ठा एवं साधना के प्रति पूर्ण सजगता जुडी हुई है . आचार्य भिक्षु की परम्परा में आचार्य तुलसी एवं दसवे आचार्य महाप्रज्ञ न केवल जैन परम्परा अपितु अध्यात्म जगत के बहुचर्चित हस्ताक्षर थे! उन्होंने जो असाम्प्रदायिक सोच एवं अहिंसा , मानवतावादी दृष्टिकोण दिया है वः एक मिसाल है! आचार्य महाप्रज्ञ प्रेक्षाध्यान साधना पद्धति के प्रणेता, महान दार्शनिक व् कुशल साहित्यकार के रूप में लोक विश्रुत थे!
आचार्य महाप्रज्ञ ने अपने उतराधिकारी के रूप में 35 वर्षीय महाश्रमण मुनि श्री मुदित कुमारजी का मनोयन किया था ! तेरापंथ में युवाचार्य मनोयन का इसलिए विशेष महत्व है की यहा एक आचार्य की परम्परा है! तेरापंथ के भावी आचार्य की नियुक्ति वर्तमान आचार्य का विशेषाधिकार है! इसमें किसी का हस्तक्षेप नही होता है ! आचार्य इस ओर स्वय विवेक से निर्णय लेते है !
तेरापंथ के वर्तमान 11 वे आचार्य महाश्रमण जी उम्र में युवा है , चिन्तन में प्रोढ़ है, ज्ञान में स्थविर है ! तेरापंथ की गोरवशाली आचार्यो की परम्परा में यह एक ओर गोरव जुड़ गया आचार्य श्री महाश्रमण के रूप में ! 22 वर्ष की उम्र में वे पूज्यवर रूप के विधिवत निकट आए फिर एक -एक सीढ़ी आगे बढ़ते गए! आज तेरापंथ के भाग्य विधाता के रूप में मुनि मुदित, आचार्य महाश्रमण के रूप में प्रतिष्ठित है !
आचार्य श्री महाश्रमण मानवता के लिए समर्पित जैन तेरापंथ के उज्जवल भविष्य है। प्राचीन गुरू परंपरा की श्रृंखला में आचार्य महाप्रज्ञ द्वारा अपने उतराधिकारी के रूप में मनोनीत महाश्रमण विनम्रता की प्रतिमूर्ति है। अणुव्रत आंदोलन के प्रवर्तक आचार्य श्री तुलसी की उन्होंने अनन्य सेवा की। तुलसी-महाप्रज्ञ जैसे सक्षम महापुरूषों द्वारा वे तराशे गये है।
जन्ममात प्रतिभा के धनी आचार्य महाश्रमण अपने चिंतन को निर्णय व परिणाम तक पहुंचाने में बडे सिद्धहस्त हैं। उसी की फलश्रुति है कि उन्होंने आचार्य महाप्रज्ञ को उनकी जनकल्याणकारी प्रवृतियों के लिए युगप्रधान पद हेतु प्रस्तुत किया। हमारे ग्यारवे आचार्य श्री महाश्रमण उम्र से युवा है, उनकी सोच गंभीर है युक्ति पैनी है, दृष्टि सूक्ष्म है, चिंतन प्रैढ़ है तथा वे कठोर परिश्रमि है। उनकी प्रवचन शैली दिल को छूने वाली है। महाश्रमण की प्रज्ञा एवं प्रशासनिक सूझबूझ बेजोड़ है।
क्रमिक विकास
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आचार्य महाश्रमणजी में जन्म जात प्रतिभा थी ! उनके भीतर ज्ञान -विज्ञान सैद्धांतिक सूझ-बुझ, तात्विक बोलो की पकड़ , प्रशासनिक योग्यता सहज में संप्राप्त थी! गणाधिप्ती आचार्य श्री तुलसी, एवं आचार्य श्री महाप्रज्ञ के चिन्तन में इनकी योग्यता के अंकन का उत्स कब हुआ ! यह समय के साथ परत दर परत खुलता रहेगा !
फिर भी इसकी हल्की पर मजबूत दस्तक देखने को लाडनू (राजस्थान) में 13 मई 1984 को मिली जब आचार्य श्री तुलसी ने अपने निजी कार्य में उन्हें नियुक्त किया ओर लगभग उसी समय प्रथम अंग सूत्र आयारो के संस्कृत भाष्य के लेखन में सहयोगी बने. श्रद्धेय आचार्यवर द्वारा आयारो जैसे आचार शास्त्रीय सूत्र पर प्रांजल भाषा में भाष्य की रचना की गई है. भाष्यकारो की परम्परा में आचार्य महाप्रज्ञ का एक गोरव पूर्ण नाम ओर जुडा हुआ है!
इसी वर्ष आचार्य श्री तुलसी का चातुर्मास जोधपुर था ! चातुर्मासिक प्रवेश 7जुलाई को हुआ ! आचार्यवर ने उन्हें (महाश्रमण ) प्रात: उपदेश देने का निर्देश दिया ! 8 जुलाई से मुनि मुदित कुमारजी (महाश्रमण ) उपदेश देना प्रारंभ किया ! उनकी वक्तृत्व शैली व् व्याख्या करने के ढंग ने लोगो को अतिशय प्रभावित किया ! जोधपुर के
तत्व निष्ठ सुश्रावक श्री जबरमलजी भंडारी ने कहा इनकी व्याख्यान शैली से लगता है ये आगे जाकर महान संत बनेगे ! 1985के आमेट चातुर्मास में भगवती सूत्र के टिपण लेख में भी सहयोगी बने!
अन्तरंग सहयोगी
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अमृत महोत्सव का तृतीया चरण उदयपुर में माध शुक्ल सप्तमी स: 2042 (16 फरवरी 1986) को मर्यादा महोत्सव के दिन आचार्य श्री तुलसी ने धोषणा की -" मै मुदित कुमार को युवाचार्य महाप्रज्ञ के अन्तरंग कार्य में सहयोगी नियुक्त करता हु !" उस घोषणा के साथ आचार्य तुलसी ने जो भूमिका बाँधी उसमे मुनि मुदित समाज के सामने उभरकर आ गये ! बैसाख शुक्ला 4 स. 2042 (13 मई 1986 ) को आचार्य श्री तुलसी ने ब्यावर में मुनि मुदित को साझपति (ग्रुप लीडर) नियुक्त किया !
अप्रमत्त साधना
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महाश्रमण पद पर अलंकृत होने के बाद उनकी स्वतन्त्र रूप से तीन यात्राए हुई जो जन सम्पर्क की दृष्टी से बड़ी ही प्रभावशाली रही थी ! माध कृष्णा 10, स.2047 (10 जनवरी 1990) को अपनी सिवांची मालाणी की यात्रा परिसम्पन्न कर सोजत रोड में पुज्यवरो के दर्शन किये तब आचार्य तुलसी ने कहा -" मै इस अवसर पर इतिहास की पुनरावृति करता हुआ तुम्हे अप्रमत्त की साधना का उपहार देता हु ." यदि किसी ने तुम्हारी अप्रमाद की साधना में स्खलन निकाली तो तुम्हे उस दिन खड़े खड़े तीन धंटा घ्यान करना होगा ! ." आज तक आपने ऐसा एक भी अवसर नही आने दिया जिसके कारण आपको प्रायच्श्रित स्वीकार करना पड़ा हो ! यह उनके अप्रमाद का परिणाम है
महाश्रमण पद का सृजन ओर नियुक्ति
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आचार्य श्री तुलसी ने संधीय अपेक्षा को ध्यान में रखकर दो पदों का सृजन किया महाश्रमण .. महाश्रमणी ! भाद्र शुक्ल 9 स. 2046 (9 सितंबर 1989) महाश्रमण पद पर मुनि मुदित कुमारजी एवं महाश्रमणी पद पर साध्वी प्रमुखा कनक प्रभाजी की नियुक्ति की! उस समय मात्र 28 वर्ष के थे हमारे वर्तमान आचार्य महाश्रमण ! ये पद अन्तरंग संधीय व्यवस्था में युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ के सतत सहयोगी के रूप सृजित किये गये ! दिल्ली में माध शुक्ला सप्तमी , स. 2051 (6 फरवरी 1995) को मर्यादा महोत्सव के अवसर पर गणाधिपती गुरुदेव तुलसी ने मुनि मुदित की इस पद पर नियुक्ति की . उस समय महाश्रमण मुनि मुदित पर अमित वात्सल्य की दृष्टी करते हुए गुरुदेव तुलसी ने कहा-" धर्म संघ में मुनि मुदित का व्यक्तित्व विशेष रूप से उभरकर सामने आया है ! मै इस अवसर पर मुनि मुदितकुमार को "महाश्रमण" पद पर प्रतिष्ठित करता हु. महाश्रमण मुनि मुदितकुमार आचार्य महाप्रज्ञ के गण संचालन के कार्य में सहयोग रहता हुआ स्वय गण- सचालन की योग्यता विकसित करे! महाप्रज्ञ ने अपना आर्शीर्वाद प्रदान करते हुए कहा था -" महाश्रमण मुदितकुमार जैसे सहयोगी को पाकर मै प्रसन्न हु ! महाश्रमण के रूप में आठ वर्ष तक पुज्यवरो की सन्निधि में जो विकास किया वः चतुर्विध धर्मसंध की नजरो में बैठ गया !
युवाचार्य पद पर नियुक्ति
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दिल्ली में महाश्रमण पद पर पुन: नियुक्ति के मोके पर गुरुदेव ने जो पत्र दिया था उसकी पक्तिया थी -" इसके लिए अब जो करणीय शेष है उसकी उचित समय आचार्य महाप्रज्ञ धोषणा करेंगे ! वह उचित समय करीब अढाई वर्ष बाद भाद्र पद शुक्ला 12 स. 2054 (14 सिप्तम्बर1997) को गंगाशर बीकानेर (राजस्थान) में आया जब आचार्य महाप्रज्ञ ने एक लाख लोगो की विशाल मानव मेदनी के बीच करीब ११:३० बजे, युवाचार्य पद का नाम लेते हुए कहा -" आओ मुनि मुदितकुमार"! इसके साथ शखनाद , विपुल हर्ष ध्वनी एवं जयकारो के साथ आचार्य श्री की इस घोषणा का स्वागत किया! आचार्य श्री महाप्रज्ञ ने अपने युवाचार्य का नामाकरण " युवाचार्य महाश्रमण " के रूप में किया! आचार्य श्री ने पिछली दीपावली (10 नवम्बर 1996) को गणाधिपती आचार्य तुलसी के साथ हुए चिन्तन के दोरान लिखे पत्र का वाचन किया साथ ही एक अन्य पत्र भी पढ़ा जो भाद्र पद शुक्ल 8 स. 2054 (10 सितम्बर 1997 ) को ही लिखा था ! इसमें उन्होंने अपने उतराधिकारी के तोर पर महाश्रमण मुदितकुमार का नाम धोषित किया था ! परम्परा के अनुरूप आचार्य श्री ने नव नियुक्त युवाचार्य महाश्रमण मुदितकुमार जी को पछेवडी ओढाई ओर अपने वाम पाशर्व में पट पर बैठने की आज्ञा प्रदान की ! आसान ग्रहण के साथ ही हर्ष से पंडाल गूंज उठा!
Sunday, 26 November 2017
Friday, 22 July 2016
धर्म के तीन प्रकार होते है - अहिंसा, संयम और तप - आचार्य श्री महाश्रमण जी
वीतराग समवसरण में विराजित गुरुदेव आचार्यश्री महाश्रमण जी मंगल पाथेय प्रदान करते हुए फ़रमाया की अहिंसा परमो धर्मः। धर्म के तीन प्रकार होते है - अहिंसा, संयम और तप। श्रावक को कभी कभी आत्मा विश्लेषण करना चाहिए। जीवन के बारे मे भी सोचना चाहिए की मैंने अपने जीवन के इस लम्बे काल में धर्म की दृष्टि से क्या किया और क्या करना चाहिए। त्याग व प्रत्याख्यान करते रहना चाहिए। यह भी चिंतन करना चाहिए की जो काम करने के लिए मैंने निर्णय लिया था उसकी क्रियांवती हुई या नही। इसकी अनुप्रेक्षा करते रहना चाहिए रात्रि व दिन में जब कभी भी समय मिले।
चातुर्मास का समय त्याग, तपस्या व ज्यादा से ज्यादा आध्यात्मिक कार्य करने का समय है। इसमें ज्यादा से ज्यादा सामायिक की साधना का भी उपयोग करना चाहिए। सर्वप्रथम चातुर्मास में अहिंसा की साधना कैसे हो? चातुर्मास के समय तीन मुख्य बिंदुओं पर ध्यान देना चाहिए जिससे अहिंसा की साधना हो सके -
पहली बात ज्यादा से ज्यादा जमीकंद का त्याग करे। जमीकंद का त्याग करने से अहिंसा की साधना अपने आप हो जायेगी।
दूसरी बात सचित का त्याग करे। उसे अचित बनाने का भी प्रयास न करे, ध्यान दे जो सहज रूप में ही अचित हो जाये उसका प्रयोग करले जैसे केले का छिलका उतरने से छिलका अलग होने पर केला अपने आप अचित बन जाता है।
तीसरी बात यथासंभव रात्रि भोजन का त्याग करे। दवाई आदि के अगार रखकर त्याग करले।
चलने फिरने में भी ध्यान दे कही इसमें भी जीव हिंसा न हो जाये। कहीं कोई जीव जन्तु पांव के निचे न आ जाए। देखकर चलने से कई फायदे भी होते हे एक तो इसमें दया व अनुकम्पा का पालन हो जाता है, दूसरी कभी कभी खोई हुई वस्तु के मिलने की भी सम्भावना रहती है तथा दृष्टि सयंम भी बना रहता है।
अहिंसा के विकास में इस बात की और भो ध्यान देना चाहिए की देर रात्रि तक वाहनों का उपयोग न करे। अहिंसा की साधना को पुष्ट करने हेतु मन, वचन व काया से भी आवेश व गुस्सा न करे। गुस्से में अक्सर बात बिगड़ जाती है इसलिए क्रोध को छोड़ने का प्रयास करे व शांति के आनंद की अनुभूति करे। चातुर्मास के समय में श्रावक अहिंसा को आगे बढ़ाने का प्रयत्न करे।
गुरुदेव ने जैन कार्यवाहिनी कोलकाता को प्रेरणा देते हुए फरमाये की जैन कार्यवाहिनी जो बरसों से चली आ रही है। इसमें अनेक श्रावक जुड़े हुए है वे उपासक श्रेणी में ज्यादा से ज्यादा जुड़े। गुरुदेव ने दीक्षार्थी भी बनने की प्रेरणा देते हुए फ़रमाया मूल भावना होती है भावना रखनी चाहिए दीक्षा के प्रति भले इस जीवन में साधू ना बन सके अगले भव में जरूर बन सके।
जैन कार्यवाहिनी कोलकाता के रजत जयंती समारोह पर जैन कार्यवाहिनी की भिक्षु भजन मण्डली ने महाश्रमण गुरुराज, म्हाने लागे प्यारा प्यारा है.. गीतिका की सुमधुर प्रस्तुती दी।
रजत जयंती वर्ष के संयोजक श्री प्रकाश सुराणा ने अपने वक्तव्य में गुरुदेव से अगले पच्चीस वर्षों में और क्या गतिविधियाँ हो सकती है इसके लिए पूज्य गुरुदेव से निवेदन किया।
जैन कार्यवाहिनी के कार्यवाहक / अभातेयुप के परामर्शक श्री रतन दुगड़ ने भी पूज्यप्रवर के समक्ष कार्यवाहिनी के बारे में बताया।
जैन कार्यवाहिनी की निर्देशिका सह स्मारिका का लोकार्पण पूज्य प्रवर के सान्निध्य में निर्देशक श्री बजरंग जी जैन, समन्यवक श्री महेंद्र जी दुधोडिया, रजत जयंती वर्ष संयोजक श्री प्रकाश जी सुराना द्वारा हुआ।
अंत में गुरुदेव ने आगे के आने वाले पच्चीस वर्ष कैसे हो इसके लिए उन्होंने फरमाया की एक चिंतन समिति होनी चाहिए। मुनि श्री दिनेश कुमारजी, मुनि कुमार श्रमण जी, मुनि योगेश कुमारजी व बजरंग जी जैन मिलकर एक चिंतन समिति बनाये तथा ये समिति आने वाले पच्चीस वर्ष कैसे हो के लिए एक प्रोजेक्ट बना सुझाव रखे, चिंतन करे फिर उसे मुझे दिखाया जाये। इसके पश्चात गुरुदेव ने मंगल पाठ सुनाया। संवाद साभार : पंकज दुधोडिया, प्रीति नाहटा