21/7/2016, धारापुर, ABTYP JTN, कोलकाता से रजत जयंती वर्ष पर जैन कार्यवाहिनी का संघ संबोध यात्रा के रूप में आया। ये संघ प्रवचन पंडाल में जुलुस के साथ प्रवेश किया। जय जय ज्योतिचरण जय जय महाश्रमण के नारों से पूरा परिसर गुंजायमान हो गया।
वीतराग समवसरण में विराजित गुरुदेव आचार्यश्री महाश्रमण जी मंगल पाथेय प्रदान करते हुए फ़रमाया की अहिंसा परमो धर्मः। धर्म के तीन प्रकार होते है - अहिंसा, संयम और तप। श्रावक को कभी कभी आत्मा विश्लेषण करना चाहिए। जीवन के बारे मे भी सोचना चाहिए की मैंने अपने जीवन के इस लम्बे काल में धर्म की दृष्टि से क्या किया और क्या करना चाहिए। त्याग व प्रत्याख्यान करते रहना चाहिए। यह भी चिंतन करना चाहिए की जो काम करने के लिए मैंने निर्णय लिया था उसकी क्रियांवती हुई या नही। इसकी अनुप्रेक्षा करते रहना चाहिए रात्रि व दिन में जब कभी भी समय मिले।
चातुर्मास का समय त्याग, तपस्या व ज्यादा से ज्यादा आध्यात्मिक कार्य करने का समय है। इसमें ज्यादा से ज्यादा सामायिक की साधना का भी उपयोग करना चाहिए। सर्वप्रथम चातुर्मास में अहिंसा की साधना कैसे हो? चातुर्मास के समय तीन मुख्य बिंदुओं पर ध्यान देना चाहिए जिससे अहिंसा की साधना हो सके -
पहली बात ज्यादा से ज्यादा जमीकंद का त्याग करे। जमीकंद का त्याग करने से अहिंसा की साधना अपने आप हो जायेगी।
दूसरी बात सचित का त्याग करे। उसे अचित बनाने का भी प्रयास न करे, ध्यान दे जो सहज रूप में ही अचित हो जाये उसका प्रयोग करले जैसे केले का छिलका उतरने से छिलका अलग होने पर केला अपने आप अचित बन जाता है।
तीसरी बात यथासंभव रात्रि भोजन का त्याग करे। दवाई आदि के अगार रखकर त्याग करले।
चलने फिरने में भी ध्यान दे कही इसमें भी जीव हिंसा न हो जाये। कहीं कोई जीव जन्तु पांव के निचे न आ जाए। देखकर चलने से कई फायदे भी होते हे एक तो इसमें दया व अनुकम्पा का पालन हो जाता है, दूसरी कभी कभी खोई हुई वस्तु के मिलने की भी सम्भावना रहती है तथा दृष्टि सयंम भी बना रहता है।
अहिंसा के विकास में इस बात की और भो ध्यान देना चाहिए की देर रात्रि तक वाहनों का उपयोग न करे। अहिंसा की साधना को पुष्ट करने हेतु मन, वचन व काया से भी आवेश व गुस्सा न करे। गुस्से में अक्सर बात बिगड़ जाती है इसलिए क्रोध को छोड़ने का प्रयास करे व शांति के आनंद की अनुभूति करे। चातुर्मास के समय में श्रावक अहिंसा को आगे बढ़ाने का प्रयत्न करे।
गुरुदेव ने जैन कार्यवाहिनी कोलकाता को प्रेरणा देते हुए फरमाये की जैन कार्यवाहिनी जो बरसों से चली आ रही है। इसमें अनेक श्रावक जुड़े हुए है वे उपासक श्रेणी में ज्यादा से ज्यादा जुड़े। गुरुदेव ने दीक्षार्थी भी बनने की प्रेरणा देते हुए फ़रमाया मूल भावना होती है भावना रखनी चाहिए दीक्षा के प्रति भले इस जीवन में साधू ना बन सके अगले भव में जरूर बन सके।
जैन कार्यवाहिनी कोलकाता के रजत जयंती समारोह पर जैन कार्यवाहिनी की भिक्षु भजन मण्डली ने महाश्रमण गुरुराज, म्हाने लागे प्यारा प्यारा है.. गीतिका की सुमधुर प्रस्तुती दी।
रजत जयंती वर्ष के संयोजक श्री प्रकाश सुराणा ने अपने वक्तव्य में गुरुदेव से अगले पच्चीस वर्षों में और क्या गतिविधियाँ हो सकती है इसके लिए पूज्य गुरुदेव से निवेदन किया।
जैन कार्यवाहिनी के कार्यवाहक / अभातेयुप के परामर्शक श्री रतन दुगड़ ने भी पूज्यप्रवर के समक्ष कार्यवाहिनी के बारे में बताया।
जैन कार्यवाहिनी की निर्देशिका सह स्मारिका का लोकार्पण पूज्य प्रवर के सान्निध्य में निर्देशक श्री बजरंग जी जैन, समन्यवक श्री महेंद्र जी दुधोडिया, रजत जयंती वर्ष संयोजक श्री प्रकाश जी सुराना द्वारा हुआ।
अंत में गुरुदेव ने आगे के आने वाले पच्चीस वर्ष कैसे हो इसके लिए उन्होंने फरमाया की एक चिंतन समिति होनी चाहिए। मुनि श्री दिनेश कुमारजी, मुनि कुमार श्रमण जी, मुनि योगेश कुमारजी व बजरंग जी जैन मिलकर एक चिंतन समिति बनाये तथा ये समिति आने वाले पच्चीस वर्ष कैसे हो के लिए एक प्रोजेक्ट बना सुझाव रखे, चिंतन करे फिर उसे मुझे दिखाया जाये। इसके पश्चात गुरुदेव ने मंगल पाठ सुनाया। संवाद साभार : पंकज दुधोडिया, प्रीति नाहटा
वीतराग समवसरण में विराजित गुरुदेव आचार्यश्री महाश्रमण जी मंगल पाथेय प्रदान करते हुए फ़रमाया की अहिंसा परमो धर्मः। धर्म के तीन प्रकार होते है - अहिंसा, संयम और तप। श्रावक को कभी कभी आत्मा विश्लेषण करना चाहिए। जीवन के बारे मे भी सोचना चाहिए की मैंने अपने जीवन के इस लम्बे काल में धर्म की दृष्टि से क्या किया और क्या करना चाहिए। त्याग व प्रत्याख्यान करते रहना चाहिए। यह भी चिंतन करना चाहिए की जो काम करने के लिए मैंने निर्णय लिया था उसकी क्रियांवती हुई या नही। इसकी अनुप्रेक्षा करते रहना चाहिए रात्रि व दिन में जब कभी भी समय मिले।
चातुर्मास का समय त्याग, तपस्या व ज्यादा से ज्यादा आध्यात्मिक कार्य करने का समय है। इसमें ज्यादा से ज्यादा सामायिक की साधना का भी उपयोग करना चाहिए। सर्वप्रथम चातुर्मास में अहिंसा की साधना कैसे हो? चातुर्मास के समय तीन मुख्य बिंदुओं पर ध्यान देना चाहिए जिससे अहिंसा की साधना हो सके -
पहली बात ज्यादा से ज्यादा जमीकंद का त्याग करे। जमीकंद का त्याग करने से अहिंसा की साधना अपने आप हो जायेगी।
दूसरी बात सचित का त्याग करे। उसे अचित बनाने का भी प्रयास न करे, ध्यान दे जो सहज रूप में ही अचित हो जाये उसका प्रयोग करले जैसे केले का छिलका उतरने से छिलका अलग होने पर केला अपने आप अचित बन जाता है।
तीसरी बात यथासंभव रात्रि भोजन का त्याग करे। दवाई आदि के अगार रखकर त्याग करले।
चलने फिरने में भी ध्यान दे कही इसमें भी जीव हिंसा न हो जाये। कहीं कोई जीव जन्तु पांव के निचे न आ जाए। देखकर चलने से कई फायदे भी होते हे एक तो इसमें दया व अनुकम्पा का पालन हो जाता है, दूसरी कभी कभी खोई हुई वस्तु के मिलने की भी सम्भावना रहती है तथा दृष्टि सयंम भी बना रहता है।
अहिंसा के विकास में इस बात की और भो ध्यान देना चाहिए की देर रात्रि तक वाहनों का उपयोग न करे। अहिंसा की साधना को पुष्ट करने हेतु मन, वचन व काया से भी आवेश व गुस्सा न करे। गुस्से में अक्सर बात बिगड़ जाती है इसलिए क्रोध को छोड़ने का प्रयास करे व शांति के आनंद की अनुभूति करे। चातुर्मास के समय में श्रावक अहिंसा को आगे बढ़ाने का प्रयत्न करे।
गुरुदेव ने जैन कार्यवाहिनी कोलकाता को प्रेरणा देते हुए फरमाये की जैन कार्यवाहिनी जो बरसों से चली आ रही है। इसमें अनेक श्रावक जुड़े हुए है वे उपासक श्रेणी में ज्यादा से ज्यादा जुड़े। गुरुदेव ने दीक्षार्थी भी बनने की प्रेरणा देते हुए फ़रमाया मूल भावना होती है भावना रखनी चाहिए दीक्षा के प्रति भले इस जीवन में साधू ना बन सके अगले भव में जरूर बन सके।
जैन कार्यवाहिनी कोलकाता के रजत जयंती समारोह पर जैन कार्यवाहिनी की भिक्षु भजन मण्डली ने महाश्रमण गुरुराज, म्हाने लागे प्यारा प्यारा है.. गीतिका की सुमधुर प्रस्तुती दी।
रजत जयंती वर्ष के संयोजक श्री प्रकाश सुराणा ने अपने वक्तव्य में गुरुदेव से अगले पच्चीस वर्षों में और क्या गतिविधियाँ हो सकती है इसके लिए पूज्य गुरुदेव से निवेदन किया।
जैन कार्यवाहिनी के कार्यवाहक / अभातेयुप के परामर्शक श्री रतन दुगड़ ने भी पूज्यप्रवर के समक्ष कार्यवाहिनी के बारे में बताया।
जैन कार्यवाहिनी की निर्देशिका सह स्मारिका का लोकार्पण पूज्य प्रवर के सान्निध्य में निर्देशक श्री बजरंग जी जैन, समन्यवक श्री महेंद्र जी दुधोडिया, रजत जयंती वर्ष संयोजक श्री प्रकाश जी सुराना द्वारा हुआ।
अंत में गुरुदेव ने आगे के आने वाले पच्चीस वर्ष कैसे हो इसके लिए उन्होंने फरमाया की एक चिंतन समिति होनी चाहिए। मुनि श्री दिनेश कुमारजी, मुनि कुमार श्रमण जी, मुनि योगेश कुमारजी व बजरंग जी जैन मिलकर एक चिंतन समिति बनाये तथा ये समिति आने वाले पच्चीस वर्ष कैसे हो के लिए एक प्रोजेक्ट बना सुझाव रखे, चिंतन करे फिर उसे मुझे दिखाया जाये। इसके पश्चात गुरुदेव ने मंगल पाठ सुनाया। संवाद साभार : पंकज दुधोडिया, प्रीति नाहटा