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Monday 8 October 2012

अर्हत पंचक


प्रभु म्हारे मन मंदिर में पधारो
म्हारो स्वागत नाथ सिकारो प्रभु


१.चिन्मय ने पाषाण बनाऊ ओ परिचय जड़ता रो
स्वयं अमल अविकार प्रभु तो स्नान कराऊ क्यारो

२. फल फूला री भेंट करू के जीवन अर्पण म्हारो
अगर तगर चन्दन के चरचू कण कण सुरभित थारो

३.नहीं ताल कंसाल बजाऊ धूप न दीप उजारो
केवल लयमय स्तवना गाऊ ध्याऊ ध्यान गुणा रो

४.मन चंचल हे और मलिन हें ओ हें’धीठ धुतारो
सब कुछ हें तब ही तो तेडू सकरुण दृष्टी निहारो

५.वीतराग हो समदर्शी हो समता रस संचारो
तुलसी तारण तरण तीर्थपति अपनो विरुद विचारो