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Saturday 4 August 2012

RSS Chief Mohan Bhagvat shown support for Mega Blood Donation Drive



आचार्य महाश्रमण की सन्निधि में आयोजित कार्यकर्ता प्रशिक्षण कार्यशाला के दौरान आरएसएस सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत ने युवकों को प्रेरणा देते हुए कहा कि युवा स्वभाव, उत्साह, साहस व निर्भीकता का नाम है। राष्ट्र के निर्माण में युवाओं का ही योगदान है। युवाओं से अपेक्षा है कि वे अपनी प्रतिभा को संभाल उसको राष्ट्र निर्माण में लगाए। युवा संगठन को आत्मीयता का मजबूत आधार दें। गलत होने पर दोष को निकाले, व्यक्ति को नहीं। संगठन में सभी एक-दूसरे के हित की सोचें। उन्होंने कहा कि कार्यकर्ता पदभार, नाम प्रतिष्ठा प्राप्त करने की इच्छा नहीं रखे। सभी संघ में रहे और संघ के प्रमुख का इंगित मानें।


अभातेयुप के अध्यक्ष श्री संजय खटेड व संगठन मंत्री राजेश सुराणा ने मेगा ब्लड डोनेशन ड्राइव जो अभातेयुप की ओर से किए जाने वाला एक ऐसा कार्यक्रम है जिसके तहत एक लाख ब्लड यूनिट 17 सितंबर को पूरे देश में इक_ा किया जाएगा। इस कार्यक्रम की किट भागवत को भेंट की। भागवत ने अपना हस्ताक्षर मय समर्थन जताते हुए कहा कि वे हर संभव अपना योगदान इसमें करेंगे। 

तेयुप प्रभारी मुनि दिनेश कुमार ने अपना प्रेरणादायी उद्बोधन युवाओं को प्रदान किया।  तेयुप सहप्रभारी मुनि योगेश कुमार ने कहा कि तेरापंथ धर्मसंघ की छत्रछाया में सभी को सुख, दुलार, प्यार मिल रहा है। इस संघ की कहानियां हमारे में जोश भरने वाली है। ऐसे संघ की सेवा में हमेशा तैयार रहना चाहिए। इस शासन के प्रति हमारे मन में श्रद्धा झलकनी चाहिए। उन्होंने कहा कि युवाओं को इस के लिए कुछ कर दिखाना है। इस संघ का दायित्व केवल साधु-साध्वियों को नहीं श्रावक-श्राविकाओं का भी है।

आचार्य के दर्शन से बैट्री चार्ज: मोहन भागवत

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक डॉ. मोहनराव भागवत ने आचार्य की सन्निधि में हर्षित होकर कहा कि ऐसे संत नैतिक मूल्यों के उदाहरण है। इनके सामीप्य व दर्शन से साल भर के लिए बैट्री चार्ज हो जाती है। इसलिए साल में एक बार दर्शन करने जरूर आता हूं। और आगे भी आने का मन रखता हूं। डॉ. भागवत ने नैतिक मूल्यों के विकास के संदर्भ में कहा कि चारित्र के बिना देश का विकास असंभव है। व्यक्ति को विवेकपूर्ण तरीके से अपनी क्रिया करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत के विकास से ही विश्व का विकास संभव है।

श्रद्धा एक प्रकार की गाय है

आचार्य महाश्रमण ने श्रद्धा के साथ ज्ञान का होना महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि श्रद्धा एक प्रकार की गाय है जो ज्ञान रूपी खूंटे से बंधी होने पर एक जगह रह सकती है। ज्ञान के खूंटे से नहीं बांधने पर श्रद्धा एक से दूसरे पर जा सकती है। इसलिए श्रद्धा का आधार ज्ञान है। आचार्य ने कहा कि हमारा श्रावक समाज ज्ञान की दृष्टि से गरीब नहीं है। श्रावकों को जितना अनुकूल समय मिले, स्वाध्याय करना चाहिए।


उन्होंने अखिल भारतीय महिला मंडल की प्रशंसा करते हुए महासभा की ओर से संचालित ज्ञानशाला, उपासक श्रेणी को धर्मसंघ का एक सुंदर उपक्रम बताया। उन्होंने कहा कि जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय भी शिक्षा का अच्छा माध्यम है। आचार्य ने श्रावक शब्द की व्याख्या करते हुए कहा कि श्र का अर्थ है श्रद्धा का प्रतीक, व का अर्थ विवेक और क का अर्थ है क्रिया। श्रावक में विवेक रहना चाहिए। विवेक धर्म है।  आचार्य ने मितव्ययता की प्रेरणा देते हुए कहा कि श्रावक समाज अनावश्यक फिजूलखर्ची न करे। धार्मिक संस्थानों में भी फिजूल खर्चे को रोके। अधिवेशनों, सम्मेलनों में मितव्ययता रखें। सामान्य किट से काम चल जाता है तो इसमें ज्यादा फिजूलखर्च नहीं करना चाहिए। आचार्य ने नामवृत्ति पर संयम की प्रेरणा देते हुए कहा कि प्रायोजकों को नाम की अति भावना से पाप कर्म का बंध होता है। समाज के लिए अर्थ पवित्र वस्तु है। व्यक्ति को समाज के हिसाब में ध्यान, संयम व नैतिकता रखनी चाहिए।


 मंत्री मुनि सुमेरमल ने कहा कि हर व्यक्ति को धार्मिक उपासना करने के लिए कोई आयाम चाहिए। व्यक्ति प्रेरणा प्राप्त करने व आगे बढऩे के उद्देश्य से संगठन से जुड़ता है। उन्होंने कहा कि हमारा यह सौभाग्य है कि हमें तेरापंथ जैसा अनुशासित संघ मिला है। जिसमें एक आचार्य की आज्ञा में चतुर्विद्य धर्मसंघ आगे बढऩे को तत्पर रहता है। बहुश्रुत परिषद के सदस्य प्रो. मुनि महेंद्रकुमार ने धर्मसंघ और हमारा दायित्व विषय पर कहा कि धर्मसंघ के प्रति दायित्व को समझने के लिए उस धर्मसंघ को भी समझना होगा। दायित्व के साथ अध्यात्म व संघ की मर्यादाओं के प्रति जागरूकता होनी जरुरी है। समणी कुसुम प्रज्ञा ने कहा कि धर्मसंघ हमारा आश्वास व विश्वास है। हम धर्मसंघ की सेवा कर स्वयं को गौरवास्पद बनाएं।