महाश्रमण ने कहा

1. तुम कार्यकर्ता बनना चाहते हो यह अच्छी बात हो सकती है पर तुम यह सोचो तुम्हारा अपने काम, क्रोध व भय पर नियंत्रण है या नहीं | - आचार्य श्री महाश्रमण 2. यदि यह आस्था हो जाए कि मूर्तिपूजा करना, द्रव्यपूजा करना धर्म है तो वह तेरापंथ की मान्यता के अनुसार बिल्कुल गलत है | हमारे अनुसार यह सम्यक्त्व को दूषित करने वाला तत्व है | - परमश्रद्धेय आचार्यश्री महाश्रमणजी 3. जो भी घटना घटित हो, उसे केवल देखना सीखे, उसके साथ जुड़े नहीं | जो व्यक्ति घटना के साथ खुद को जोड़ देता है, वह दु:खी बन जाता है और जो द्रष्टा ( viewer ) भाव से घटना को देखता है, वह दुःख मुक्त रहता है | ~आचार्य श्री महाश्रमणजी

Friday 28 December 2012

अपनी टेबल पर ‘पी’ लिखने वाला छात्र - आचार्य महाप्रज्ञ


एक लड़का सदा अपनी मेज़ पर ‘पी’ लिख कर रखता था। वह अपनी किताबों और कॉपियों पर भी सदा ‘पी’ लिख दिया करता था। घर पर भी उसने जगह-जगह पर ‘पी’ लिख छोड़ा था। लोग हैरान होते थे, पर वह किसी को कुछ नहीं बताता था। धीरे-धीरे लोगों ने पूछना छोड़ दिया।हाई स्कूल के बाद वह कॉलेज में दाखिल हुआ। वहां भी ‘पी’ लिखने का उसका वह क्रम चालू रहा। कुछ दिनों तक लड़के आपस में चर्चा भी करते रहे, पर कोई उसके रहस्य को नहीं समझ सका। आखिर में सहपाठियों ने मज़ाक में उसका नाम ही ‘पी साहब’ रख दिया। पर वह क़तई परेशान नहीं हुआ। पढ़ाई में वह खूब मन लगाता था, अत: एमए में फर्स्ट डिविज़न पास हुआ, और उसे अपने ही स्कूल में प्रिंसिपल की नौकरी मिल गई। प्रिंसिपल बनकर जब वह पहले दिन स्कूल में आया तो छात्रों को अपने ‘पी’ लिखने का रहस्य बताया, बचपन से ही मेरी कामना थी कि अपने स्कूल का प्रिंसिपल बनूं। इसी को याद रखने के लिए सदा अपने सामने ‘पी’ लिखा हुआ रखता था। आज मेरा वह सपना पूरा हो गया। क्या आपने कोलंबस का नाम सुना है? कैसे वह अपने छोटे से जहाज़ ‘पिल्टा’ को लेकर अथाह सागर में नई दुनिया की खोज में निकल पड़ा था? उसका संकल्प बहुत प्रबल था। जब उसका जहाज़ महासागर की लहरों से टक्कर ले रहा था, ऊपर आकाश और नीचे अनंत जलराशि थी -ऐसे विकट समय में जहाज़ का एक मस्तूल खराब हो गया। पर कोलंबस को कौन विचलित कर सकता था?
उसने नाविकों को धन का प्रलोभन दिया। नाविक आगे चले, पर केनरीज़ द्वीप के दो सौ मील पश्चिम में उसके कुतुबनुमा की सुई खराब हो गई। अब तो मल्लाहों का रहा-सहा साहस भी टूट गया। इस प्रकार समुद्र में अज्ञात दिशा की ओर बढ़ना मृत्यु से खेलना था। पर कोलंबस अपने निश्चय पर अड़ा रहा। अंतत: उसके संकल्प की विजय हुई और नाविक आगे चलने को तैयार हो गए। और 12 अक्टूबर, 1492 को उनका जहाज़ नई दुनिया- अमेरिका के तट पर जाकर लग गया। यदि कोलंबस अपने निश्चय पर दृढ़ नहीं रहता और बाधाओं से घबरा कर अपना निश्चय बदल देता, तो वह कभी इस नई दुनिया की खोज नहीं कर पाता।
हर व्यक्ति में उतनी ही शक्ति छिपी हुई है, जितनी कोलंबस में थी। पर कोई बिरला ही उसे समझ कर उसका उपयोग करता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि एक एकड़ भूमि की घास में इतनी शक्ति होती है कि उससे संसार की सारी मोटरों का संचालन किया जा सकता है। परंतु वह बिखरी हुई अवस्था में है। केवल उस शक्ति को इंजन के पिस्टन रॉड पर केंद्रित करने की आवश्यकता है।
इसी तरह से ऐसे हज़ारों व्यक्ति हैं जो ज्ञानी हैं, जिनमें शक्ति भरी पड़ी है, परंतु वे उसे इकट्ठाकरके किसी निश्चित स्थान पर लाने में असमर्थ हैं। इसी कारण उन्हें विफल होना पड़ता है। शक्तिको बिखेर देने से उसका अपव्यय ही नहीं होता, बल्कि काम करने का उत्साह भी नष्ट हो जाताहै।
भारत की आजादी की लड़ाई में महात्मा गांधी ने देश को एक नारा दिया था, ‘करो या मरो।’इसके पीछे आशय यही था कि हमें यदि आज़ादी प्राप्त करनी है तो उसके लिए दृढ़ता से जुटनाहोगा। सारा देश दृढ़ता से उनकी बात पर अड़ गया। इसी का परिणाम था कि भारत बिना किसीरक्तपात के विदेशी शासन से मुक्त हो गया।
इसीलिए सभी धर्मों में प्रतिज्ञा और संकल्प का बहुत महत्व है। इसका मूल उद्देश्य मनुष्य को मनसे दृढ़ बनाना है। जब हम एक क्षेत्र में अपनी संकल्प शक्ति को विकसित कर लेते हैं, तो दूसरेक्षेत्रों में भी हम उसी प्रकार से सफलता प्राप्त कर सकते हैं।

प्रस्तुति : ललित गर्ग
http://mahanagaronline.com/अपनी-टेबल-पर-पी-लिखने-वाला