महाश्रमण ने कहा

1. तुम कार्यकर्ता बनना चाहते हो यह अच्छी बात हो सकती है पर तुम यह सोचो तुम्हारा अपने काम, क्रोध व भय पर नियंत्रण है या नहीं | - आचार्य श्री महाश्रमण 2. यदि यह आस्था हो जाए कि मूर्तिपूजा करना, द्रव्यपूजा करना धर्म है तो वह तेरापंथ की मान्यता के अनुसार बिल्कुल गलत है | हमारे अनुसार यह सम्यक्त्व को दूषित करने वाला तत्व है | - परमश्रद्धेय आचार्यश्री महाश्रमणजी 3. जो भी घटना घटित हो, उसे केवल देखना सीखे, उसके साथ जुड़े नहीं | जो व्यक्ति घटना के साथ खुद को जोड़ देता है, वह दु:खी बन जाता है और जो द्रष्टा ( viewer ) भाव से घटना को देखता है, वह दुःख मुक्त रहता है | ~आचार्य श्री महाश्रमणजी

Saturday 1 September 2012

राष्ट्रपति डॉ, राजेन्द्र प्रसाद जितने बडे विद्धवान थे उतने ही दृष्टी सम्पन थे।

राष्ट्रपति डॉ, राजेन्द्र प्रसाद जितने बडे विद्धवान थे उतने ही दृष्टी सम्पन थे। अध्यात्म और धर्म के प्रति उनके मन मे प्रगाढ आस्था थी। देश कि जनता का नैतिक स्तर उन्नत हो, यह उनका लक्ष्य था। आचार्यश्री तुलसी के साथ उनके सम्पर्क और अणुव्रत के असाम्प्रदयिक स्वरुप की जानकारी के बाद यह बात उनके समझ मे आ गई थी कि अणुव्रत का अभियान नितान्त नैतिक अभियान है। यह देश के हित मे है, और मानवता के हित मे। उनकी इच्छा थी कि इस अभियान को व्यवस्थित रुप से देश मे चलाया जाऐ।
इसके लिए पण्डित जवाहरलाल नेहरु के साथ आचार्य श्री का मिलन, आवश्यक समझते थे।
बातचीत के मध्य उन्होने कहा-"आचार्यजी! पण्डित नेहरु से आप मिले या नही ?"
आचार्य श्री ने कहा-"नही, पण्डितजी से हमारा कोई परिचय नही है। उनके बारे मे हमने सुना है कि धर्म और धर्म गुरुओ मे उनकी कोई अभिरुची नही है। वे न धर्म की चर्चा करते है और ना ही धर्म गुरुओ से मिलते है। न हमने उनसे मिलने का प्रयास किया और न उनकी और से हमे कोई सवाद मिला। आप हमारे काम मे रस लेते है इसलिए आपसे मिलने मे प्रसन्नता होती है।
राष्ट्रपति-"आचार्यजी! पण्डितजी के बारे मे आपकी ऐसी धारणाए हो सकती है। पर वे बहुत अच्छे विचारो के व्यक्ति है। उनसे आपका मिलना आवश्यक है। आप अणुव्रत का जो काम कर रहे है, वह उनके ध्यान मे आ जाऍ तो आपको काम करने मे सुविधा रहेगी। मै चाहता हू आप एक बार उनसे अवश्य मिले।
आचार्य श्री -"आप आवश्यक समझते है तो हमे पण्डितजी से मिलने मे कोई आपत्ति नही है। इसमे माध्यम आपको ही बनना होगा। क्योकि उनके साथ हमारा कोई परिचय नही है।"
राष्ट्रपति-" ठीक है, मै आपके और उनके बीच मे सम्पर्क स्थापित कर दूगा।"
(राष्ट्रपति महोदय ने आचार्य श्री तुलसी क हवाला देते हुऍ प्रधानमन्त्री को पत्र लिखा-"प्रिय प्रधानमन्त्रीजी! आचार्य श्री तुलसीजी से आपका मिलना देश के हित मे होगा । अभी वे दिल्ली मे आए हुऍ है। सम्भव हो तो इस पर विचार करे।")
प्रधानमन्त्री जहवारलाला नेहरु को राष्ट्रपति का पत्र मिला। उन्होने उसके उत्तर मे लिखा -" प्रिय राष्ट्रपतिजी! मुझे आचार्य श्री तुलसीजी से मिलकर प्रसन्नता होगी। मै इन दिनो व्यस्त हू। इसलिए आचार्यश्रीजी यदि प्रधानमत्री-निवास पर दर्शन दे तो बडी कृपा होगी।"
राष्ट्रपति के निजी सचिव चक्रधरशरण बाबू नया बाजार स्थित अणुव्रत भवन आऍ। उन्होने राष्ट्रपति और प्रधानमत्री के बीच हुए पत्र-व्यवाहर की जानकारी देते हुए कहा-" राष्ट्रपति महोदय कि इच्छा है कि आप प्रधानमत्री निवास पधारे। प्रधानमत्री ने आपके साथ भेट के लिए कार्तिक शुक्ला पुर्णिमा के दिन सायकालीन सात बजे का समय निश्चित किया है।" चक्रधरशरण बाबू की बात सुनकर आचार्य श्रे बोले-" हम लोग पद यात्री है। पदयात्रा करते हुऐ हम गॉव-गॉव, नगर-नगर, घर घर जाते रहते है। इसी क्रम मे हम प्रधानमत्री निवास भी जा सकते है। किन्तु प्रधानमत्री ने जो समय दिया है वह हमारे अनुकुल नही है। कार्तिक पुर्णिमा को हमारा चातुर्मास सम्पन्न हो रहा है, इसलिए हम आवास स्थल छोड कर नई दिल्ली नही जा सकते है। दुसरी बात रात्रिकालिन हम बहार नही जाते। इसलिए सात बजे पहुचना भी सम्भव नही है। रात भर प्रधानमत्री की कोठी मे रहना भी कठीन है। इसलिए मिलने का कोई दूसरा समय निर्धारित करना होगा ।
चक्रधरशरण बाबू ने पुरी बात चीत की जानकारी राष्ट्रपति महोदय को दे दी। राष्ट्रपति ने पुनः प्रधानमत्री से सम्पर्क किया। उनसे दुसरा समय मागा गया। तो वे बोले -"आचार्यश्रीजी को जिस दिन,जिस समय यहॉ आने की सुविधा हो वही समय रखा जा सकता है। मिगसर कृष्णा प्रतिपदा के दिन मध्यान के दिन ढाई बजे का समय निश्चित हुआ।
मिगसर कृष्णा प्रतिपदा को नया बाजार से चातुर्मास प्रवास सम्पन्न होने पर आचार्य श्री तुलसी विहार कर चक्रधरशरण बाबू की कोठी पर पधारे। वह कोठी प्रधानमन्त्री निवास से एक फ्लॉग की दूरी पर थी। वहॉ से आचर्यश्री ढाई बजे चलकर प्रधानमन्त्री नेहरु के निवास पहुचे। उस समय आचार्य श्री तुलसी के साथ सात साधू थे। इसमे वर्तमान तेरापन्थ के आचार्य महाप्रज्ञ जी मुनी नथमलजी के रुप मे साथ थे। साथ ही कई श्रावकगण भी थे।
प्रधानमन्त्री की कोठी के बाहर प्रधानमन्त्री के निकटस्थ व्यक्तियो ने आचार्यप्रवर का स्वागत किया। वहॉ के सैक्रेटरी मदलालजी आचार्य श्री को
कोठी मे ले गए। कोठी मे मदनलालजी ने बैठने के लिए कमरा दिखाया, कालीन बिछा था और कुर्सीयॉ लगी हुई थी।
आचार्य श्री ने कहा-" कालीन पर तो हम नही बैठ सकेगे।"
तभी अन्य स्थान बरामदे मे बैठने के लिए उपयुक्त स्थान देख ही रहे थे की प्रधानमत्री जी आ गए। भारतीय सस्कृति के अनुसार दोनो हाथ जोडकर प्रधानमन्त्री ने आचार्यश्री को वन्दन किया।