महाश्रमण ने कहा

1. तुम कार्यकर्ता बनना चाहते हो यह अच्छी बात हो सकती है पर तुम यह सोचो तुम्हारा अपने काम, क्रोध व भय पर नियंत्रण है या नहीं | - आचार्य श्री महाश्रमण 2. यदि यह आस्था हो जाए कि मूर्तिपूजा करना, द्रव्यपूजा करना धर्म है तो वह तेरापंथ की मान्यता के अनुसार बिल्कुल गलत है | हमारे अनुसार यह सम्यक्त्व को दूषित करने वाला तत्व है | - परमश्रद्धेय आचार्यश्री महाश्रमणजी 3. जो भी घटना घटित हो, उसे केवल देखना सीखे, उसके साथ जुड़े नहीं | जो व्यक्ति घटना के साथ खुद को जोड़ देता है, वह दु:खी बन जाता है और जो द्रष्टा ( viewer ) भाव से घटना को देखता है, वह दुःख मुक्त रहता है | ~आचार्य श्री महाश्रमणजी

Friday 28 December 2012

अपनी टेबल पर ‘पी’ लिखने वाला छात्र - आचार्य महाप्रज्ञ


एक लड़का सदा अपनी मेज़ पर ‘पी’ लिख कर रखता था। वह अपनी किताबों और कॉपियों पर भी सदा ‘पी’ लिख दिया करता था। घर पर भी उसने जगह-जगह पर ‘पी’ लिख छोड़ा था। लोग हैरान होते थे, पर वह किसी को कुछ नहीं बताता था। धीरे-धीरे लोगों ने पूछना छोड़ दिया।हाई स्कूल के बाद वह कॉलेज में दाखिल हुआ। वहां भी ‘पी’ लिखने का उसका वह क्रम चालू रहा। कुछ दिनों तक लड़के आपस में चर्चा भी करते रहे, पर कोई उसके रहस्य को नहीं समझ सका। आखिर में सहपाठियों ने मज़ाक में उसका नाम ही ‘पी साहब’ रख दिया। पर वह क़तई परेशान नहीं हुआ। पढ़ाई में वह खूब मन लगाता था, अत: एमए में फर्स्ट डिविज़न पास हुआ, और उसे अपने ही स्कूल में प्रिंसिपल की नौकरी मिल गई। प्रिंसिपल बनकर जब वह पहले दिन स्कूल में आया तो छात्रों को अपने ‘पी’ लिखने का रहस्य बताया, बचपन से ही मेरी कामना थी कि अपने स्कूल का प्रिंसिपल बनूं। इसी को याद रखने के लिए सदा अपने सामने ‘पी’ लिखा हुआ रखता था। आज मेरा वह सपना पूरा हो गया। क्या आपने कोलंबस का नाम सुना है? कैसे वह अपने छोटे से जहाज़ ‘पिल्टा’ को लेकर अथाह सागर में नई दुनिया की खोज में निकल पड़ा था? उसका संकल्प बहुत प्रबल था। जब उसका जहाज़ महासागर की लहरों से टक्कर ले रहा था, ऊपर आकाश और नीचे अनंत जलराशि थी -ऐसे विकट समय में जहाज़ का एक मस्तूल खराब हो गया। पर कोलंबस को कौन विचलित कर सकता था?
उसने नाविकों को धन का प्रलोभन दिया। नाविक आगे चले, पर केनरीज़ द्वीप के दो सौ मील पश्चिम में उसके कुतुबनुमा की सुई खराब हो गई। अब तो मल्लाहों का रहा-सहा साहस भी टूट गया। इस प्रकार समुद्र में अज्ञात दिशा की ओर बढ़ना मृत्यु से खेलना था। पर कोलंबस अपने निश्चय पर अड़ा रहा। अंतत: उसके संकल्प की विजय हुई और नाविक आगे चलने को तैयार हो गए। और 12 अक्टूबर, 1492 को उनका जहाज़ नई दुनिया- अमेरिका के तट पर जाकर लग गया। यदि कोलंबस अपने निश्चय पर दृढ़ नहीं रहता और बाधाओं से घबरा कर अपना निश्चय बदल देता, तो वह कभी इस नई दुनिया की खोज नहीं कर पाता।
हर व्यक्ति में उतनी ही शक्ति छिपी हुई है, जितनी कोलंबस में थी। पर कोई बिरला ही उसे समझ कर उसका उपयोग करता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि एक एकड़ भूमि की घास में इतनी शक्ति होती है कि उससे संसार की सारी मोटरों का संचालन किया जा सकता है। परंतु वह बिखरी हुई अवस्था में है। केवल उस शक्ति को इंजन के पिस्टन रॉड पर केंद्रित करने की आवश्यकता है।
इसी तरह से ऐसे हज़ारों व्यक्ति हैं जो ज्ञानी हैं, जिनमें शक्ति भरी पड़ी है, परंतु वे उसे इकट्ठाकरके किसी निश्चित स्थान पर लाने में असमर्थ हैं। इसी कारण उन्हें विफल होना पड़ता है। शक्तिको बिखेर देने से उसका अपव्यय ही नहीं होता, बल्कि काम करने का उत्साह भी नष्ट हो जाताहै।
भारत की आजादी की लड़ाई में महात्मा गांधी ने देश को एक नारा दिया था, ‘करो या मरो।’इसके पीछे आशय यही था कि हमें यदि आज़ादी प्राप्त करनी है तो उसके लिए दृढ़ता से जुटनाहोगा। सारा देश दृढ़ता से उनकी बात पर अड़ गया। इसी का परिणाम था कि भारत बिना किसीरक्तपात के विदेशी शासन से मुक्त हो गया।
इसीलिए सभी धर्मों में प्रतिज्ञा और संकल्प का बहुत महत्व है। इसका मूल उद्देश्य मनुष्य को मनसे दृढ़ बनाना है। जब हम एक क्षेत्र में अपनी संकल्प शक्ति को विकसित कर लेते हैं, तो दूसरेक्षेत्रों में भी हम उसी प्रकार से सफलता प्राप्त कर सकते हैं।

प्रस्तुति : ललित गर्ग
http://mahanagaronline.com/अपनी-टेबल-पर-पी-लिखने-वाला

Monday 8 October 2012

अर्हत पंचक


प्रभु म्हारे मन मंदिर में पधारो
म्हारो स्वागत नाथ सिकारो प्रभु


१.चिन्मय ने पाषाण बनाऊ ओ परिचय जड़ता रो
स्वयं अमल अविकार प्रभु तो स्नान कराऊ क्यारो

२. फल फूला री भेंट करू के जीवन अर्पण म्हारो
अगर तगर चन्दन के चरचू कण कण सुरभित थारो

३.नहीं ताल कंसाल बजाऊ धूप न दीप उजारो
केवल लयमय स्तवना गाऊ ध्याऊ ध्यान गुणा रो

४.मन चंचल हे और मलिन हें ओ हें’धीठ धुतारो
सब कुछ हें तब ही तो तेडू सकरुण दृष्टी निहारो

५.वीतराग हो समदर्शी हो समता रस संचारो
तुलसी तारण तरण तीर्थपति अपनो विरुद विचारो

Saturday 1 September 2012

राष्ट्रपति डॉ, राजेन्द्र प्रसाद जितने बडे विद्धवान थे उतने ही दृष्टी सम्पन थे।

राष्ट्रपति डॉ, राजेन्द्र प्रसाद जितने बडे विद्धवान थे उतने ही दृष्टी सम्पन थे। अध्यात्म और धर्म के प्रति उनके मन मे प्रगाढ आस्था थी। देश कि जनता का नैतिक स्तर उन्नत हो, यह उनका लक्ष्य था। आचार्यश्री तुलसी के साथ उनके सम्पर्क और अणुव्रत के असाम्प्रदयिक स्वरुप की जानकारी के बाद यह बात उनके समझ मे आ गई थी कि अणुव्रत का अभियान नितान्त नैतिक अभियान है। यह देश के हित मे है, और मानवता के हित मे। उनकी इच्छा थी कि इस अभियान को व्यवस्थित रुप से देश मे चलाया जाऐ।
इसके लिए पण्डित जवाहरलाल नेहरु के साथ आचार्य श्री का मिलन, आवश्यक समझते थे।
बातचीत के मध्य उन्होने कहा-"आचार्यजी! पण्डित नेहरु से आप मिले या नही ?"
आचार्य श्री ने कहा-"नही, पण्डितजी से हमारा कोई परिचय नही है। उनके बारे मे हमने सुना है कि धर्म और धर्म गुरुओ मे उनकी कोई अभिरुची नही है। वे न धर्म की चर्चा करते है और ना ही धर्म गुरुओ से मिलते है। न हमने उनसे मिलने का प्रयास किया और न उनकी और से हमे कोई सवाद मिला। आप हमारे काम मे रस लेते है इसलिए आपसे मिलने मे प्रसन्नता होती है।
राष्ट्रपति-"आचार्यजी! पण्डितजी के बारे मे आपकी ऐसी धारणाए हो सकती है। पर वे बहुत अच्छे विचारो के व्यक्ति है। उनसे आपका मिलना आवश्यक है। आप अणुव्रत का जो काम कर रहे है, वह उनके ध्यान मे आ जाऍ तो आपको काम करने मे सुविधा रहेगी। मै चाहता हू आप एक बार उनसे अवश्य मिले।
आचार्य श्री -"आप आवश्यक समझते है तो हमे पण्डितजी से मिलने मे कोई आपत्ति नही है। इसमे माध्यम आपको ही बनना होगा। क्योकि उनके साथ हमारा कोई परिचय नही है।"
राष्ट्रपति-" ठीक है, मै आपके और उनके बीच मे सम्पर्क स्थापित कर दूगा।"
(राष्ट्रपति महोदय ने आचार्य श्री तुलसी क हवाला देते हुऍ प्रधानमन्त्री को पत्र लिखा-"प्रिय प्रधानमन्त्रीजी! आचार्य श्री तुलसीजी से आपका मिलना देश के हित मे होगा । अभी वे दिल्ली मे आए हुऍ है। सम्भव हो तो इस पर विचार करे।")
प्रधानमन्त्री जहवारलाला नेहरु को राष्ट्रपति का पत्र मिला। उन्होने उसके उत्तर मे लिखा -" प्रिय राष्ट्रपतिजी! मुझे आचार्य श्री तुलसीजी से मिलकर प्रसन्नता होगी। मै इन दिनो व्यस्त हू। इसलिए आचार्यश्रीजी यदि प्रधानमत्री-निवास पर दर्शन दे तो बडी कृपा होगी।"
राष्ट्रपति के निजी सचिव चक्रधरशरण बाबू नया बाजार स्थित अणुव्रत भवन आऍ। उन्होने राष्ट्रपति और प्रधानमत्री के बीच हुए पत्र-व्यवाहर की जानकारी देते हुए कहा-" राष्ट्रपति महोदय कि इच्छा है कि आप प्रधानमत्री निवास पधारे। प्रधानमत्री ने आपके साथ भेट के लिए कार्तिक शुक्ला पुर्णिमा के दिन सायकालीन सात बजे का समय निश्चित किया है।" चक्रधरशरण बाबू की बात सुनकर आचार्य श्रे बोले-" हम लोग पद यात्री है। पदयात्रा करते हुऐ हम गॉव-गॉव, नगर-नगर, घर घर जाते रहते है। इसी क्रम मे हम प्रधानमत्री निवास भी जा सकते है। किन्तु प्रधानमत्री ने जो समय दिया है वह हमारे अनुकुल नही है। कार्तिक पुर्णिमा को हमारा चातुर्मास सम्पन्न हो रहा है, इसलिए हम आवास स्थल छोड कर नई दिल्ली नही जा सकते है। दुसरी बात रात्रिकालिन हम बहार नही जाते। इसलिए सात बजे पहुचना भी सम्भव नही है। रात भर प्रधानमत्री की कोठी मे रहना भी कठीन है। इसलिए मिलने का कोई दूसरा समय निर्धारित करना होगा ।
चक्रधरशरण बाबू ने पुरी बात चीत की जानकारी राष्ट्रपति महोदय को दे दी। राष्ट्रपति ने पुनः प्रधानमत्री से सम्पर्क किया। उनसे दुसरा समय मागा गया। तो वे बोले -"आचार्यश्रीजी को जिस दिन,जिस समय यहॉ आने की सुविधा हो वही समय रखा जा सकता है। मिगसर कृष्णा प्रतिपदा के दिन मध्यान के दिन ढाई बजे का समय निश्चित हुआ।
मिगसर कृष्णा प्रतिपदा को नया बाजार से चातुर्मास प्रवास सम्पन्न होने पर आचार्य श्री तुलसी विहार कर चक्रधरशरण बाबू की कोठी पर पधारे। वह कोठी प्रधानमन्त्री निवास से एक फ्लॉग की दूरी पर थी। वहॉ से आचर्यश्री ढाई बजे चलकर प्रधानमन्त्री नेहरु के निवास पहुचे। उस समय आचार्य श्री तुलसी के साथ सात साधू थे। इसमे वर्तमान तेरापन्थ के आचार्य महाप्रज्ञ जी मुनी नथमलजी के रुप मे साथ थे। साथ ही कई श्रावकगण भी थे।
प्रधानमन्त्री की कोठी के बाहर प्रधानमन्त्री के निकटस्थ व्यक्तियो ने आचार्यप्रवर का स्वागत किया। वहॉ के सैक्रेटरी मदलालजी आचार्य श्री को
कोठी मे ले गए। कोठी मे मदनलालजी ने बैठने के लिए कमरा दिखाया, कालीन बिछा था और कुर्सीयॉ लगी हुई थी।
आचार्य श्री ने कहा-" कालीन पर तो हम नही बैठ सकेगे।"
तभी अन्य स्थान बरामदे मे बैठने के लिए उपयुक्त स्थान देख ही रहे थे की प्रधानमत्री जी आ गए। भारतीय सस्कृति के अनुसार दोनो हाथ जोडकर प्रधानमन्त्री ने आचार्यश्री को वन्दन किया।

Saturday 4 August 2012

RSS Chief Mohan Bhagvat shown support for Mega Blood Donation Drive



आचार्य महाश्रमण की सन्निधि में आयोजित कार्यकर्ता प्रशिक्षण कार्यशाला के दौरान आरएसएस सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत ने युवकों को प्रेरणा देते हुए कहा कि युवा स्वभाव, उत्साह, साहस व निर्भीकता का नाम है। राष्ट्र के निर्माण में युवाओं का ही योगदान है। युवाओं से अपेक्षा है कि वे अपनी प्रतिभा को संभाल उसको राष्ट्र निर्माण में लगाए। युवा संगठन को आत्मीयता का मजबूत आधार दें। गलत होने पर दोष को निकाले, व्यक्ति को नहीं। संगठन में सभी एक-दूसरे के हित की सोचें। उन्होंने कहा कि कार्यकर्ता पदभार, नाम प्रतिष्ठा प्राप्त करने की इच्छा नहीं रखे। सभी संघ में रहे और संघ के प्रमुख का इंगित मानें।


अभातेयुप के अध्यक्ष श्री संजय खटेड व संगठन मंत्री राजेश सुराणा ने मेगा ब्लड डोनेशन ड्राइव जो अभातेयुप की ओर से किए जाने वाला एक ऐसा कार्यक्रम है जिसके तहत एक लाख ब्लड यूनिट 17 सितंबर को पूरे देश में इक_ा किया जाएगा। इस कार्यक्रम की किट भागवत को भेंट की। भागवत ने अपना हस्ताक्षर मय समर्थन जताते हुए कहा कि वे हर संभव अपना योगदान इसमें करेंगे। 

तेयुप प्रभारी मुनि दिनेश कुमार ने अपना प्रेरणादायी उद्बोधन युवाओं को प्रदान किया।  तेयुप सहप्रभारी मुनि योगेश कुमार ने कहा कि तेरापंथ धर्मसंघ की छत्रछाया में सभी को सुख, दुलार, प्यार मिल रहा है। इस संघ की कहानियां हमारे में जोश भरने वाली है। ऐसे संघ की सेवा में हमेशा तैयार रहना चाहिए। इस शासन के प्रति हमारे मन में श्रद्धा झलकनी चाहिए। उन्होंने कहा कि युवाओं को इस के लिए कुछ कर दिखाना है। इस संघ का दायित्व केवल साधु-साध्वियों को नहीं श्रावक-श्राविकाओं का भी है।

आचार्य के दर्शन से बैट्री चार्ज: मोहन भागवत

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक डॉ. मोहनराव भागवत ने आचार्य की सन्निधि में हर्षित होकर कहा कि ऐसे संत नैतिक मूल्यों के उदाहरण है। इनके सामीप्य व दर्शन से साल भर के लिए बैट्री चार्ज हो जाती है। इसलिए साल में एक बार दर्शन करने जरूर आता हूं। और आगे भी आने का मन रखता हूं। डॉ. भागवत ने नैतिक मूल्यों के विकास के संदर्भ में कहा कि चारित्र के बिना देश का विकास असंभव है। व्यक्ति को विवेकपूर्ण तरीके से अपनी क्रिया करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत के विकास से ही विश्व का विकास संभव है।

श्रद्धा एक प्रकार की गाय है

आचार्य महाश्रमण ने श्रद्धा के साथ ज्ञान का होना महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि श्रद्धा एक प्रकार की गाय है जो ज्ञान रूपी खूंटे से बंधी होने पर एक जगह रह सकती है। ज्ञान के खूंटे से नहीं बांधने पर श्रद्धा एक से दूसरे पर जा सकती है। इसलिए श्रद्धा का आधार ज्ञान है। आचार्य ने कहा कि हमारा श्रावक समाज ज्ञान की दृष्टि से गरीब नहीं है। श्रावकों को जितना अनुकूल समय मिले, स्वाध्याय करना चाहिए।


उन्होंने अखिल भारतीय महिला मंडल की प्रशंसा करते हुए महासभा की ओर से संचालित ज्ञानशाला, उपासक श्रेणी को धर्मसंघ का एक सुंदर उपक्रम बताया। उन्होंने कहा कि जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय भी शिक्षा का अच्छा माध्यम है। आचार्य ने श्रावक शब्द की व्याख्या करते हुए कहा कि श्र का अर्थ है श्रद्धा का प्रतीक, व का अर्थ विवेक और क का अर्थ है क्रिया। श्रावक में विवेक रहना चाहिए। विवेक धर्म है।  आचार्य ने मितव्ययता की प्रेरणा देते हुए कहा कि श्रावक समाज अनावश्यक फिजूलखर्ची न करे। धार्मिक संस्थानों में भी फिजूल खर्चे को रोके। अधिवेशनों, सम्मेलनों में मितव्ययता रखें। सामान्य किट से काम चल जाता है तो इसमें ज्यादा फिजूलखर्च नहीं करना चाहिए। आचार्य ने नामवृत्ति पर संयम की प्रेरणा देते हुए कहा कि प्रायोजकों को नाम की अति भावना से पाप कर्म का बंध होता है। समाज के लिए अर्थ पवित्र वस्तु है। व्यक्ति को समाज के हिसाब में ध्यान, संयम व नैतिकता रखनी चाहिए।


 मंत्री मुनि सुमेरमल ने कहा कि हर व्यक्ति को धार्मिक उपासना करने के लिए कोई आयाम चाहिए। व्यक्ति प्रेरणा प्राप्त करने व आगे बढऩे के उद्देश्य से संगठन से जुड़ता है। उन्होंने कहा कि हमारा यह सौभाग्य है कि हमें तेरापंथ जैसा अनुशासित संघ मिला है। जिसमें एक आचार्य की आज्ञा में चतुर्विद्य धर्मसंघ आगे बढऩे को तत्पर रहता है। बहुश्रुत परिषद के सदस्य प्रो. मुनि महेंद्रकुमार ने धर्मसंघ और हमारा दायित्व विषय पर कहा कि धर्मसंघ के प्रति दायित्व को समझने के लिए उस धर्मसंघ को भी समझना होगा। दायित्व के साथ अध्यात्म व संघ की मर्यादाओं के प्रति जागरूकता होनी जरुरी है। समणी कुसुम प्रज्ञा ने कहा कि धर्मसंघ हमारा आश्वास व विश्वास है। हम धर्मसंघ की सेवा कर स्वयं को गौरवास्पद बनाएं।

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Saturday 9 June 2012

आचार्य श्री तुलसी एवम प्रधानमत्री के बीच 41 मिनट तक क्या सवाद हुआ ?

राष्ट्रपति डॉ, राजेन्द्र प्रसाद जितने बडे विद्धवान थे उतने ही दृष्टी सम्पन थे। अध्यात्म और धर्म के प्रति उनके मन मे प्रगाढ आस्था थी। देश कि जनता का नैतिक स्तर उन्नत हो, यह उनका लक्ष्य था। आचार्यश्री तुलसी के साथ उनके सम्पर्क और अणुव्रत के असाम्प्रदयिक स्वरुप की जानकारी के बाद यह बात उनके समझ मे आ गई थी कि अणुव्रत का अभियान नितान्त नैतिक अभियान है। यह देश के हित मे है, और मानवता के हित मे। उनकी इच्छा थी कि इस अभियान को व्यवस्थित रुप से देश मे चलाया जाऐ।
इसके लिए पण्डित जवाहरलाल नेहरु के साथ आचार्य श्री का मिलन, आवश्यक समझते थे।
बातचीत के मध्य उन्होने कहा-"आचार्यजी! पण्डित नेहरु से आप मिले या नही ?"
आचार्य श्री ने कहा-"नही, पण्डितजी से हमारा कोई परिचय नही है। उनके बारे मे हमने सुना है कि धर्म और धर्म गुरुओ मे उनकी कोई अभिरुची नही है। वे न धर्म की चर्चा करते है और ना ही धर्म गुरुओ से मिलते है। न हमने उनसे मिलने का प्रयास किया और न उनकी और से हमे कोई सवाद मिला। आप हमारे काम मे रस लेते है इसलिए आपसे मिलने मे प्रसन्नता होती है।
राष्ट्रपति-"आचार्यजी! पण्डितजी के बारे मे आपकी ऐसी धारणाए हो सकती है। पर वे बहुत अच्छे विचारो के व्यक्ति है। उनसे आपका मिलना आवश्यक है। आप अणुव्रत का जो काम कर रहे है, वह उनके ध्यान मे आ जाऍ तो आपको काम करने मे सुविधा रहेगी। मै चाहता हू आप एक बार उनसे अवश्य मिले।
आचार्य श्री -"आप आवश्यक समझते है तो हमे पण्डितजी से मिलने मे कोई आपत्ति नही है। इसमे माध्यम आपको ही बनना होगा। क्योकि उनके साथ हमारा कोई परिचय नही है।"
राष्ट्रपति-" ठीक है, मै आपके और उनके बीच मे सम्पर्क स्थापित कर दूगा।"
(राष्ट्रपति महोदय ने आचार्य श्री तुलसी क हवाला देते हुऍ प्रधानमन्त्री को पत्र लिखा-"प्रिय प्रधानमन्त्रीजी! आचार्य श्री तुलसीजी से आपका मिलना देश के हित मे होगा । अभी वे दिल्ली मे आए हुऍ है। सम्भव हो तो इस पर विचार करे।")
प्रधानमन्त्री जहवारलाला नेहरु को राष्ट्रपति का पत्र मिला। उन्होने उसके उत्तर मे लिखा -" प्रिय राष्ट्रपतिजी! मुझे आचार्य श्री तुलसीजी से मिलकर प्रसन्नता होगी। मै इन दिनो व्यस्त हू। इसलिए आचार्यश्रीजी यदि प्रधानमत्री-निवास पर दर्शन दे तो बडी कृपा होगी।"
राष्ट्रपति के निजी सचिव चक्रधरशरण बाबू नया बाजार स्थित अणुव्रत भवन आऍ। उन्होने राष्ट्रपति और प्रधानमत्री के बीच हुए पत्र-व्यवाहर की जानकारी देते हुए कहा-" राष्ट्रपति महोदय कि इच्छा है कि आप प्रधानमत्री निवास पधारे। प्रधानमत्री ने आपके साथ भेट के लिए कार्तिक शुक्ला पुर्णिमा के दिन सायकालीन सात बजे का समय निश्चित किया है।" चक्रधरशरण बाबू की बात सुनकर आचार्य श्रे बोले-" हम लोग पद यात्री है। पदयात्रा करते हुऐ हम गॉव-गॉव, नगर-नगर, घर घर जाते रहते है। इसी क्रम मे हम प्रधानमत्री निवास भी जा सकते है। किन्तु प्रधानमत्री ने जो समय दिया है वह हमारे अनुकुल नही है। कार्तिक पुर्णिमा को हमारा चातुर्मास सम्पन्न हो रहा है, इसलिए हम आवास स्थल छोड कर नई दिल्ली नही जा सकते है। दुसरी बात रात्रिकालिन हम बहार नही जाते। इसलिए सात बजे पहुचना भी सम्भव नही है। रात भर प्रधानमत्री की कोठी मे रहना भी कठीन है। इसलिए मिलने का कोई दूसरा समय निर्धारित करना होगा ।
चक्रधरशरण बाबू ने पुरी बात चीत की जानकारी राष्ट्रपति महोदय को दे दी। राष्ट्रपति ने पुनः प्रधानमत्री से सम्पर्क किया। उनसे दुसरा समय मागा गया। तो वे बोले -"आचार्यश्रीजी को जिस दिन,जिस समय यहॉ आने की सुविधा हो वही समय रखा जा सकता है। मिगसर कृष्णा प्रतिपदा के दिन मध्यान के दिन ढाई बजे का समय निश्चित हुआ।
मिगसर कृष्णा प्रतिपदा को नया बाजार से चातुर्मास प्रवास सम्पन्न होने पर आचार्य श्री तुलसी विहार कर चक्रधरशरण बाबू की कोठी पर पधारे। वह कोठी प्रधानमन्त्री निवास से एक फ्लॉग की दूरी पर थी। वहॉ से आचर्यश्री ढाई बजे चलकर प्रधानमन्त्री नेहरु के निवास पहुचे। उस समय आचार्य श्री तुलसी के साथ सात साधू थे। इसमे वर्तमान तेरापन्थ के आचार्य महाप्रज्ञ जी मुनी नथमलजी के रुप मे साथ थे। साथ ही कई श्रावकगण भी थे।
प्रधानमन्त्री की कोठी के बाहर प्रधानमन्त्री के निकटस्थ व्यक्तियो ने आचार्यप्रवर का स्वागत किया। वहॉ के सैक्रेटरी मदलालजी आचार्य श्री को
कोठी मे ले गए। कोठी मे मदनलालजी ने बैठने के लिए कमरा दिखाया, कालीन बिछा था और कुर्सीयॉ लगी हुई थी।
आचार्य श्री ने कहा-" कालीन पर तो हम नही बैठ सकेगे।"
तभी अन्य स्थान बरामदे मे बैठने के लिए उपयुक्त स्थान देख ही रहे थे की प्रधानमत्री जी आ गए। भारतीय सस्कृति के अनुसार दोनो हाथ जोडकर प्रधानमन्त्री ने आचार्यश्री को वन्दन किया।

Friday 25 May 2012

अभातेयुप टीम मिली खेल मंत्री से


17 सितम्बर २०१२ का शुभ दिन विश्व पटल पर भारत का गौरव बढ़ाने वाला एवं यशगाथा गाने वाला बनने जा रहा है. इस रोज एक ही दिन में भारत भर में १ लाख यूनिट रक्त एकत्रित करने की कवायद अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद् द्वारा ‘मेगा ब्लड डोनेशन ड्राइव’ के माध्यम से की जायेगी. यह एक विश्व रिकार्ड होगा. १०० से भी अधिक शहरो में करीब १००० केन्द्रों पर रक्तदान के माध्यम से १००००० रक्त यूनिट एकत्रित किये जायेंगे. सुप्रसिद्ध क्रिकेट खिलाड़ी श्री सचिन तेंदुलकर इस मेगा ब्लड डोनेशन ड्राइव के ब्रांड एम्बेसेडर है. आचार्य श्री महाश्रमण के मानव-कल्याण के सन्देश से प्रेरित हो तेरापंथ युवक परिषद् यह मानव सेवा का कार्य करने जा रही है. 


इसके लिए अखिल भारतीय तेयुप के अध्यक्ष श्री संजय खटेड एवं उनकी टीम ने दिल्ली में केन्द्रीय खेल मंत्री अजय माकन से मुलाकात की एवं उन्हें इस जन-कल्याणकारी परियोजना के बारे में अवगत कराया. इधर सूरत में पत्रकारों से रूबरू होते हुए इस कार्यक्रम के कन्वेंनर श्री राजेश सुराना ने बताया कि – “आपात परिस्थितियों में ब्लड बेंको में रक्त यूनिटों की कमी के निवारण एवं मानव कल्याण के उद्देश्य के लिए यह अभियान चलाया जाएगा. इसमें अभातेयुप की नेपाल एवं दुबई की शाखाए भी सहभाग करेंगी.” उन्होंने बताया कि –औद्योगिक शहर सूरत में देश की सबसे बड़ी Blood Data Bank रक्तदाता सुचना संग्रह बैंक तैयार होगी ताकि आपात परिस्थिति में देश के किसी भी कोने से रक्तदाताओ की सुचना शीघ्रता से प्राप्त हो सके. इसके साथ साथ अंग-दान, अवयव-दान आदि भी किये जायेंगे एवं लोगो से व्यसन-मुक्ति के संकल्प पत्र भी भरवाए जायेंगे.  

मेगा ब्लड डोनेशन ड्राइव के बैनर का विमोचन


अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद की ओर से 17 सितम्बर को राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित होने वाले मेगा ब्लड डोनेशन ड्राइव के बैनर का व पुस्तिका का विमोचन आचार्य की सन्निधि में केंद्रीय मंत्री संदीप बंदोपाध्याय ने किया। मंत्री ने कहा कि हम सभी इस पुनीत कार्य में भाग लेना चाहिए। अभातेयुप के उपाध्यक्ष अविनाश नाहर, संगठन मंत्री राजेश सुराणा व सहमंत्री हनुमान लुंकड़ ने बताया कि इस रक्तदान शिविर के तहत पूरे भारतवर्ष में एक ही दिन में 1 लाख यूनिट रक्त एकत्रित किया जाएगा। कार्यक्रम के ब्रांड एम्बेसेडर सचिन तेंदुलकर हैं।



मेगा ब्लड डोनेशन ड्राइव के बैनर